भीलट देव सम्पूर्ण जीवन दर्शन व कथा
आज आपको हम श्री भीलट देव बाबा की जन्म से पूरी कथा आपको इस ब्लॉग में बताएंगे बने रहिए हमारे साथ और भी कई तरह के चमत्कार और बाबा की लीलाओं के बारे में अवगत कराएंगे श्री भिलट देव बाबा का जन्म रोल गांव मैं हुआ था यह हरदा जिले के समीप पड़ता है श्री भिलट देव संपूर्ण जीवन दर्शन व कथा के बारे में आपको विस्तार से बताते हैं
वीरभद्र का भिलट देव अवतार में वर्णन
श्री पार्वती जी और भगवान शंकर जी के चरणों में प्रणाम करता हूं जिनके बिना भिलट देव कोई कार्य नहीं कर सकते ज्ञान रूप नित्य शंकर रूपी गुरु की में वंदना करता हूं जिनके सहारे भिलट देव अपना सारा कार्य सिद्ध करते हैं और मैं सभी संत महापुरुषों के चरणों में प्रणाम करता हूं जिनकी कृपा से और भोजन से यह सृष्टि का संतुलन बना रहता है और मैं मां नर्मदा के चरणों में प्रणाम करता हूं मां आप पापियों के पाप धोने में संपूर्ण सक्षम हो और भिलट देव की आपकी इस पवित्र धारा में स्नान हेतु जाया करते हैं मां आप मुझ पापी अज्ञानी जीव का भी पाप धो ताकि मैं भिलट देव की गाथा को लिख सकूं हे मा भिलट देव एक महाशक्ति हैं और उनकी महिमा अपरंपार है और मेरी बुद्धि बहुत छोटी है इसलिए मैं उनकी महिमा व जीवनी कैसे लिखूंगा मैं भिलट देव से प्रार्थना करता हूं कि वह स्वयं प्रेरणा देता कि मैं उनके बारे में कुछ लिख सकूं जैसे कि शास्त्रों में भगवान विष्णु के 24 अवतार दर्शाए गए हैं और 12 अवतार नरसिंह अवतार ब्राह्मण अवतार अवतार परशुराम अवतार राम अवतार कृष्ण अवतार ऐसे 24 अवतार का वर्णन आता है इसी तरह भगवान शिव के अवतार होते हैं और इन्हीं अवतारों की श्रंखला में भीलट देव भी आते हैं अब वीरभद्र अवतार का वर्णन रामायण के अंतर्गत कर रहे हैं जब दक्ष ने सब मुनियों को बुलाया और वह बड़ा यज्ञ करने लगे जो देवता यज्ञ का भाग पाते हैं दक्ष ने उन सब को आदर सहित निमंत्रित किया दक्ष का निमंत्रण पाकर किन्नर नाग आदी सब देवता अपनी अपनी स्त्रियों सहित चले विष्णु ब्रह्मा महादेव को छोड़कर सभी देवता अपना-अपना विमान सजाकर चले सती जी ने देखा अनेकों प्रकार के सुंदर विमान आकाश में जा रहे हैं देव सुंदरिया मधुर गान कर रही हैं जिन्हें सुनकर मुनियों का ध्यान छूट जाता है सती जी ने विमान में देवताओं को जाने का कारण पूछा तब शिवजी ने सब बातें बतलाई पिता के यज्ञ की बात सुनकर सती कुछ प्रसन्न हुई और सोचने लगी यदि महादेव जी मुझे आज्ञा दें तो इसी बहाने मैं पिता के घर जाकर रहूं क्योंकि उनके हृदय में पति द्वारा त्यागी जाने का बड़ा दुख था पर अपना अपराध समझ कर वह कुछ कहती नहीं थी आखिर सती जी संकोच और प्रेम रस में सनि हुई मनोहर वाणी से बोली हे प्रभु मेरे पिता के घर बहुत बड़ा उत्सव है आपकी आज्ञा हो तो हे कृपा धाम में आदर सहित उसे देखने जाऊं शिव जी ने कहा तुमने बात तो अच्छी कहीं यह मेरे मन को भी पसंद आई और उन्होंने निमंत्रण नहीं भेजा यह अनुचित है दक्ष ने अपनी सब बेटियों को बुलाया है किंतु हमारे बेर के कारण उन्होंने तुमको भी भुला दिया एक बार ब्रह्मा की सभा में हम से अप्रसन्न हो गए थे उसी से वे अब भी हमारा अपमान करते हैं ।हे जो तुम बिना बुलाए जाओगी तो ठीक नहीं रहेगा और ना मान मर्यादा ही रहेगी यद्यपि इसमें संदेह नहीं है कि मित्र स्वामी पिता और गुरु के घर बिना बुलाए भी जाना चाहिए तो भी जहां कोई विरोध मानता हो उसके घर जाने से कल्याण नहीं होता शिव जी ने बहुत प्रकार से समझाया मगर होनहार बस सती के हृदय में बोध नहीं हुआ फिर शिवजी ने कहा कि यदि बिना बुलाए जाओगी तो हमारी समझ से बात अच्छी ना होगी शिव जी ने बहुत प्रकार से कह कर देख लिया किंतु जब सती किसी प्रकार भी नहीं रुकी तब त्रिपुरारी महादेव जी ने अपने मुख्य गणों को साथ देकर उनको विदा कर दिया भवानी जब पिता दक्ष के घर पहुंची तब दक्ष के डर के मारे किसी ने उनकी आवभगत नहीं कि केवल माता भले ही आदर से मिली बहने मुस्कुराते हुए मिली दक्ष ने तो उनकी कुशल तक नहीं पूछी सती जी को देखकर उलटे उनके सारे अंग जल उठे तब सती ने जाकर यज्ञ देखा तो वहां कहीं शिवजी का भाग नहीं दिखाई दिया तब शिवजी ने जो कहा था उनकी समझ में आया स्वामी का अपमान समझकर सती का हृदय जल उठा पिछला पति परित्याग का दुख उनके हृदय में उतना नहीं व्यापा था जितना महान दुख इस समय पति अपमान के कारण हुआ है यद्यपि जगत में अनेक प्रकार के दुख हैं तथापि जाति अपमान सबसे बढ़कर कठिन है यह समझकर सती को क्रोध आया माता ने उन्हें बहुत प्रकार से समझाया बुझाया परंतु उसने शिव जी का अपमान सहा नहीं गया इससे उनके हृदय में कुछ भी बौद्ध नहीं हुआ तब भरी सभा को हट पूर्वक डांट कर क्रोध भरे बचन बोली है सभासदों और सब मुनीश्वरओं सुनो जिन लोगों ने यहां शिवजी की निंदा की व सुनी है उन सब को उसका फल मिलेगा और मेरे पिता दक्ष भी भली-भति पछताएंगे जहां संत शिवजी और लक्ष्मीपति विष्णु भगवान भगवान की निंदा सुनी जाए वहां ऐसी मर्यादा है कि यदि अपना वश चले तो उस निंदा करने वाले की जीभ काट ले और नहीं तो कान बंद कर वहां से चले जाएं त्रिपुर देत्य को मारने वाले भगवान महेश्वर संपूर्ण जगत की आत्मा है वे जगत पिता और सबका हित करने वाले हैं मेरा मंदबुद्धि पिता उनकी निंदा करता है और मेरा यह शरीर दक्ष के वीर्य से उत्पन्न है इसलिए चंद्रमा को ललाट पर धारण करने वाले ब्रसकेतु शिव जी को हृदय में धारण करके मैं इस शरीर को तुरंत ही त्याग दूंगी
ऐसा कहकर सती जी ने योगा अग्नि में अपना शरीर भस्म कर डाला सारी यज्ञशाला में हाहाकार मच गया सती का मरण सुनकर शिव जी के गण यज्ञ विध्वंस करने लगे विध्वंस होते देख कर भ्रुगू ऋषि ने उसकी रक्षा की यह समाचार शिवजी को मिले तब उन्होंने क्रोध करके अपनी जटा से वीरभद्र को उत्पन्न किया और उन्होंने यज्ञ विध्वंस कर डाला और सब देवताओं को यथोचित दंड दिया फिर दक्ष में मैं करता तो इसलिए उसका सिर काटकर बकरे का सिर लगा दिया और इन्हीं वीरभद्र को कलयुग में भगवान शिव रेवजी जी गवली और माता मैदा की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर भिलट देव के रूप में उनके घर जन्म लिया और उनका भिलट देव नाम पड़ा या भिलट देव का वास्तविक स्वरूप है या भगवान शंकर के अंश हैं उन्होंने गवली समाज पर बहुत बड़ा उपकार किया है जो इस समाज में अवतार लिया देखे यह जो वीरभद्र का अवतार हमने भिलट देव को दर्शाया है इनमें कोई भी बुद्धिमान शंका नहीं करें क्योंकि इस महान विभूति का बहुत बड़ा स्वरूप है कई लोग इनको नाग का अवतार मानते हैं कोई योगी संत का अवतार मानते हैं मगर भिलटदेव सिवनी मालवा में भिलट देव को वीरभद्र का अवतार मानते हैं इस स्थान का एक अलग अनोखा महत्व है आगे की लीला हम अगले ब्लॉग में बताएंगे इसलिए बने रहिए हमारे साथ
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